रहस्य का खजाना हैं हनुमान जी की अष्ट सिद्धियां (Hanuman Ji Asht Shiddhi)



हनुमान जी को भगवान श्रीराम का परमभक्त व कलियुग का प्रधान देवता माना जाता है। हनुमान जी भगवान शिव का 11वें अवतार होने के साथ-साथ तमाम अद्भुत शक्तियों के स्वामी हैं। त्रेतायुग में भगवान राम की अनन्य सेवा करने के बाद कलियुग में भी उनके होने के तमाम साक्षात प्रमाण मिलते हैं। ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले मंगलवार हनुमान जी की पूजा का समर्पित हैं और इसे बड़े मंगल के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान हनुमान की पूजा करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान राम की सेवा के लिए ही हनुमान जी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने आराध्य प्रभु राम की अनन्य सेवा कर ऐसे आदर्श स्थापित किए, जिनकी वजह से उन्हें भक्त शिरोमणि भी कहा जाता है। महाकाव्य रामायण के मुताबिक, दसानन रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया था और हनुमान जी उनका पता लगाने लंका गए थे, तो माता सीता ने उन्हें कई वरदान दिए थे। माता सीता द्वारा दिए गए वरदानों में श्रेष्ठ माना जाता है अष्ट सिद्धियों का वरदान। हनुमान चालीसा की चौपाई में यह वर्णित है ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस वर दीन्ह जानकी माता’। 


आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि भगवान हनुमान जी के पास वह कौन सी आठ सिद्धियां हैं और उनका रहस्य क्या है ? 


हनुमान जी के पास पहली सिद्धि थी अणिमा सिद्धि, जिसके माध्यम से वह अपने शरीर को इच्छानुसार छोटा कर सकते थे। इस शक्ति के जरिए ही हनुमान जी ने सूक्ष्म रूप धारण कर लंका नगरी का भ्रमण किया था।



दूसरी सिद्धि थी महिमा सिद्धि, इसके जरिए हनुमान जी विशालयकाय यानी पर्वताकार रूप धारण कर सकते थे। सौ योजन के समुद्र को पार करते समय सुरसा नाम की राक्षसी के सामने और अशोक वाटिका में माता सीता के सामने उन्होंने इसका उपयोग किया था। 

तीसरी सिद्धि है गरिमा सिद्धि, इसके माध्यम से हनुमान जी अपने शरीर को असीमित रूप से भारी बना सकते हैं। द्वापरयुग में महाबली भीम के अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर हनुमान जी ने इस सिद्धि का उपयोग किया था। इसी का परिणाम था कि सौ हाथियों का बल रखने वाले भीम उनकी पूंछ तक नहीं हिला सके थे। 


चौथी सिद्धि है लघिमा सिद्धि, इसके माध्यम से हनुमान जी अपने भार को एकदम से हल्का कर सकते हैं। इस सिद्धि का उपयोग कर हनुमान जी ने अशोक वाटिका में पत्तों पर बैठ कर माता सीता को अपना परिचय दिया था। 


पांचवीं सिद्धि है प्राप्ति सिद्धि, इसके जरिए हनुमान अपनी इच्छानुसार किसी भी चीज को प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर पशु-पक्षियों की भाषा समझना या फिर आने वाले समय के घटनाक्रम को देख लेना।


छठी सिद्धि है प्राकाम्य सिद्धि, इस सिद्धि के बल से पृथ्वी से पाताल तक की गहराईयों को नापा जा सकता है। आसमान में उड़ सकते हैं, मनचाहे वक्त तक पानी में जीवित रह सकते हैं, किसी भी शरीर को धारण कर सकते हैं और अनंत काल तक युवा बने रह सकते हैं। 




सातवीं थी ईशीत्व सिद्धि, इस सिद्धि से हनुमान जी को दैवीय शक्तियां मिली थी। इसे प्राप्त करने वाला भगवान की तरह पूजनीय हो जाता है। 


आठवीं सिद्धि थी वशित्व, इस सिद्धि का गुण नाम के अनुरूप है यानी किसी को भी अपने वश में किया जा सकता है। इसी के बल पर हनुमान जी अपने इंद्रियों और मन को पूरी तरह नियंत्रित रखते हैं। 


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